Self-realisation does not mean, however, that we should ignore the life in the physical plane of matter. Matter is expression of God. Matter and Spirit are inseparable like heat and fire, cold and ice, flower and fragrance. Power and he who possesses power are one. A life in the physical plane is a definite preparation for the eternal life. World is our best teacher; the five elements are our Gurus. Nature is our mother and director. Nature is our silent Master. World is the best training ground for the development of various divine virtues. The central teaching of the Gita is that one should realize his Self by remaining in the world.
(Swami Sivananda)
आत्मचेतना का अर्थ यह नहीं कि हम भौतिक जीवन की अवहेलना करें। पदार्थ तो परमात्मा का ही व्यक्त स्वरुप है। जिस तरह आग और तेज, हिम और शीतलता, पुष्प और सौरभ तथा शक्ति और शक्तिमान अभिन्न हैं, उसी प्रकार पदार्थ और उसके अन्दर विद्यमान शक्ति को अलग नहीं किया जा सकता। इस भौतिक लोक का जीवन आत्मचेतनामय जीवन का उपकरण है। संसार से परमोच्च शिक्षा प्राप्त की जा सकती है। पाঁच तत्व हमारे गुरु हैं। प्रकृति की गोद में पलकर ही मनुष्य अच्छी शिक्षाएं प्राप्त कर सकता है। आत्मचेतना की प्राप्ति के लिए जिन-जिन गुणों से व्यक्ति को सुसज्जित होना पड़ता है, उन सबका उपार्जन इसी भौतिक लोक में किया जा सकता है। गीता का भी यही उपदेश है कि संसार में रहते हुए आत्म-प्राप्ति की चेष्टा करें।
मंगलवार, 19 जनवरी 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें