सोमवार, 18 जनवरी 2010

DIVINE MESSAGE - 18.01.10

Life is of two kinds, viz., life in matter, and life in Atma or Spirit or pure consciousness. Biologists and physiologists hold that life consists of thinking, feeling, knowing, willing, digestion, excretion, circulation, respiration, etc. This kind of life is not everlasting. This is attended with dangers, pain, fear, cares and anxieties, worries, exertion, sin, etc. Therefore, sages, seers and prophets who have realised their inner self by discipline of the mind and the organs, by leading a life of self-denial, self-sacrifice and self-abnegation have emphatically declared that a life in the Pure Spirit alone can bring everlasting peace, infinite bliss, supreme joy, eternal satisfaction and immortality.
(Swami Sivananda)
जीवन दो प्रकार का होता है, यथा भौतिक जीवन और चेतनात्मक जीवन। नृतत्त्व-शास्त्री तथा देहविज्ञानवादियों का कहना है कि सोचना, अनुभव करना, जानना, संकल्प करना, पचाना, मलादि वेगों का त्यागना, रक्तादि का संचरण, स्खलन आदि क्रियाओं से ही जीवन है। परन्तु इस प्रकार का जीवन शाश्वत नहीं है। इस जीवन में खतरे, दुःख, चिन्ताएঁ और घबराहट, व्याधियां पापादि अनेकों प्रतिक्रियाएं व्याप्त रहती हैं।अतः जिन महात्माओं ने इन्द्रियों और मन पर संयम स्थापित कर, त्याग, तपस्या और वैराग्य-साधना कर आत्ममय जीवन बिताया, उनको यह कहते तनिक भी झुंझलाहट नहीं हुई कि आध्यात्मिक जीवन ही शाश्वत है, जिससे पूर्ण शांति, परम् आनन्द, सच्चा सुख और संतुष्टि की प्राप्ति होती है।

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