शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

DIVINE MESSAGE - 15.01.10

WHAT IS LIFE? IS IT MERELY THE ACT OF BREATHING OR RESPIRATION OR DIGESTION OR EXCRETION, THE CONSTRUCTIVE OR DESTRUCTIVE CHANGES THAT EVER GO ON IN THE PHYSICAL ORGANISM OR HUMAN BODY OR ECONOMY OF NATURE? IS IT MERE THINKING OR PLANNING OR SCHEMING TO EARN MONEY, NAME & FAME? IS IT THE ACT OF PROCREATION TO KEEP UP THE LINE? SCIENTISTS AND BIOLOGISTS HAVE A VERY DIFFERENT CONCEPTION OF LIFE. PHILOSOPERS HAVE QUITE A DIFFERENT CONCEPTION OF LIFE.
(Swami Sivananda)
जीवन क्या है? क्या केवल सांस लेना, भोजन को पचाना, मलमूत्रादि वेगों का त्याग करना, शरीर रचना और निर्माण के अन्य कार्यों का होना ही जीवन की परिभाषा का पूरक है? क्या केवल विचार करना, योजनाएं बनाना, विमर्श करना, नाम-यश आदि के लिए प्रयत्न करना ही जीवन की सिद्धि का बोधक है? क्या सन्तति-प्रजनन से जीवन का अर्थ स्पष्ट होता है? वैज्ञानिकों और नृतत्त्व के वैज्ञानिकों का जीवन-विषयक दृष्टिकोण अलग-अलग है। दार्शनिकों ने जीवन को दूसरे दृष्टिकोण से आँका है।

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