शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2009

बंजारानामा - 'नज़ीर' अकबराबादी

क्या सख़्त मकां बनवाता है, खंभ तेरे तन का है पोला
तू ऊंचे कोट उठाता है, वां गोर गढ़े ने मुंह खोला
क्या रैनी, ख़दक़, रंद बड़े, क्या बुर्ज, कंगूरा अनमोला
गढ़, कोट, रहकला, तोप, क़िला, क्या शीशा दारू और गोला
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा

हर आन नफ़े और टोटे में, क्यों मरता फिरता है बन-बन
टुक ग़ाफ़िल दिल में सोच जरा, है साथ लगा तेरे दुश्मन
क्या लौंडी, बांदी, दाई, दिदा, क्या बन्दा, चेला नेक-चलन
क्या मस्जिद, मंदिर, ताल, कुआं, क्या खेतीबाड़ी, फूल, चमन
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा

जब मर्ग फिराकर चाबुक को, ये बैल बदन का हांकेगा
कोई ताज समेटेगा तेरा, कोइ गौन सिए और टांकेगा
हो ढेर अकेला जंगल में तू, ख़ाक लहद की फांकेगा
उस जंगल में फिर आह 'नज़ीर', इक तिनका आन न झांकेगा
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा

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3 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…
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परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढिया प्रस्तुति।

rajeysha ने कहा…

इस गीत को सभी को जानने की जरूरत है।